3 सितंबर 2023

पहाड़ सा स्वाभिमान डॉ. गुणशेखर

 
3बजे अपराह्न,01सितंबर23,शुक्रवार,कासा ब्लैंका, कृष्णा कावेरी, यमुना नगर,अंधेरी वेस्ट,मुंबई।

सोनू सूद के हनुमान यानी व्यवस्था प्रबंधक गुड्डू भाई के साथ फोटो।

 



जो ये कहता है कि गरीबों का कोई स्वाभिमान नहीं होता उसे सोनू सूद के आवास के बाहर खड़े होकर देखना चाहिए कि सोनू सूद की आत्मीयता से जन्मा किसी गरीब का विश्वास किस पिच पर बोलता है। किसी भी दिन के बजाय अच्छा यह होगा कि इतवार को शाम  4:00 बजे उनके आवास के बाहर खड़े होकर यह नज़ारा देखा जाए।
      लोग बताते हैं कि इतवार की  शाम को 4:00 बजे सोनू जी सबसे मिलते हैं।मेरे जैसों के चलते अनेठे भी भीड़ होती है पर उतनी नहीं, जितनी कि नियमित रूप से हर रविवार को शाम 4:00 बजे होती है।
          आज मैं भी सोनू सूद से मिलने उनके आवास Casablanca
यमुना नगर ,अंधेरी वेस्ट  आया था।पता चला कि वे चार बजे शूटिंग से लौटेंगे और चार पैंतालीस पर मेरी ट्रेन है, वह भी बांद्रा टर्मिनस से। अब जल्दी ही लौटना होगा यहां से।बांद्रा टर्मिनस एक घंटे की दूरी पर जो है। शूटिंग पर होने के कारण वे न मिल पाए न सही, गरीबों के मसीहा का आशियाना और उसके हनुमान को तो देख ही लिया। शेष अनुमान लगा लेंगे।
      इनके यहां आने वालों के लिए भगवान हैं सोनू सूद, और जिनके लिए भगवान हैं ये,
वे अब भी डटे रहेंगे।
       इन भक्तों में एक सज्जन बलसाड से आए हैं।उनकी बेटी की लाखों की फीस सोनू भरेंगे।एक नव दंपति दिल्ली से अपनी बहिन और ननद की शादी के लिए आया है।एक यू ट्यूबर असम से आया है।उसका कहना है कि,'मेरे और सोनू सूद में सबसे बड़ी समानता यही है कि दोनों अपने लिए नहीं समाज के लिए जी रहे हैं।" एक चित्र उसने दिखाया कि उसकी समाज धर्मिता के कारण ही हेमंत विश्व शर्मा ने कैसे उसे अपने सीने से चिपटा रखा है।
        सोनू सूद का यह असर है कि उनसे मिलने आए हुओं को कोई खाना खिला जाता है तो कोई चाय पिला जाता है।जब मैं यहां पहुंचा तो देखा कि एक सज्जन इन लोगों को कढ़ी चावल खिला रहे हैं। मैंने बड़ी देर तक इंतज़ार किया कि देखूं ये कितने पैसे लेते हैं।लेकिन वैसा कुछ हाथ न  लगा,जो सोच रहे थे।वे सज्जन तो सब कुछ लुटा के खाली हाथ लौट गए। शायद वह हम सब तमाशबीनों को यही संदेश देना चाह रहे थे कि जाना तो सबको खाली हाथ ही है फिर चाहे अब हो या तब।
       बाहर जितने भी लोग थे,उनमें सबसे बाद में आए हुए मुझे मिलने के लिए जब गुड्डू भाई बाहर आए तो घंटों से प्रतीक्षारत लोगों को मुझसे इर्ष्या अवश्य हुई पर शायद बड़ा आदमी अनुमानकर माफ़ कर दिया।जब एक महिला से मैंने पूछा कि तुम्हें पूरा भरोसा है कि मदद मिलेगी तो उसने ज़वाब दिया कि,"अगर भरोसा न होता तो तीन दिन की यात्रा करके न आती।"एक बारह -तेरह साल का लड़का पिछले रविवार को सोनू जी से मिलकर गया था।आज उसकी मां, बहन और जीजा उसे खोजने आए थे। रील पर सवार संवेदना के रियल हीरो  सोनू सूद का आबाल वृद्ध सभी में  यह क्रेज देखकर मैं दंग था।
        मैं इन सबको इनकी हालत पर छोड़कर अंदर चला गया था।बाहर निकलने पर इन्होंने छाया हीन खजूर समझते हुए मुझसे कोई खास अपेक्षा नहीं रखी।बस सबने केवल देर तक बात ही करनी चाही।इसके अलावा उन्होंने मदद के लिए मुझसे कुछ नहीं कहा।एक लड़के ने मुझसे बस यही पूछा कि,"क्या आप कोई ट्रस्ट चलाते हैं?"इससे मैंने जाना कि गरीब से गरीब व्यक्ति भी हर एक के आगे हाथ नहीं फैलाता। इन्हें देखकर मुझे लगा कि गरीबों का सहारा ही नहीं स्वाभिमान भी हैं सोनू सूद।
        भीतर से बार - बार यही लालसा उकसा रही थी कि उन मज़बूरों के फोटो खींचकर किसी आलेख में डालकर कहीं छपाया जाए। लेकिन इससे उनका और उनकी मज़बूरी का अपमान होता।उनके इसी स्वाभिमान पर रीझते हुए ब्लॉगर और यू ट्यूबर असमी बंधु को छोड़कर उनमें से किसी के साथ न फोटो खींची, न खिंचाई।बहुत संभव है उन्हें इस बात का बुरा भी लगा हो।पर, मेरे मन मारने के पीछे मेरा कोई अहं या बहम नहीं बल्कि इनका यही पहाड़-सा स्वाभिमान था।


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